भारत में चिंतन की दो स्पष्ट धाराएं रही हैं, द्विज धारा और बहुजन धारा। दूसरे शब्दों में कहें, तो किसी भी चीज को देखने की भारत में दो बिलकुल विपरीत विश्व दृष्टियां रही हैं, एक बहुजन विश्वदृष्टि और दूसरी ब्राह्मणवादी विश्वदृष्टि। रामकथा और राम पर आधारित महाकाव्यों के संदर्भ में भी दोनों दृष्टियां निरंतर टकराती रही हैं।
आर्य-द्विज ब्राह्मणवादी परंपरा के आदर्श नायक दशरथ पुत्र राम हैं और उनके सबसे बड़े महाकाव्य वाल्मीकि की रामायण और उत्तर भारत में तुलसी का राम चरितमानस है। जहां एक ओर द्विज अध्येता, लेखक और पाठक राम को आदर्श नायक और रामायण एवं रामचरित मानस को महान महाकाव्य मानते रहे हैं, वहीं दूसरी ओर बहुजन नायक दशरथ पुत्र राम और उन पर आधारित महाकाव्यों को बहुजनों पर द्विजों के वर्चस्व का उपकरण मानते रहे हैं।
अकारण नहीं है कि करीब सभी बहुजन नायकों ने दशरथ पुत्र राम और उनकी रामकथा पर लिखा है और बताया है कि कैसे राम न तो ईश्वर हैं, न आदर्श नायक और नहीं कोई धार्मिक व्यक्तित्व। बहुजन नायकों का यह भी कहना है कि वाल्मीकि की रामायण और रामचरित मानस नामक दोनों ग्रंथ आर्य-ब्राह्मण श्रेष्ठता और बहुजनों पर द्विजों के वर्चस्व की स्थापना के लिए लिखे गए ग्रंथ हैं,ये किस तरह से भी धार्मिक ग्रंथ नहीं हैं, जैसे बाइबल, कुरान और बुद्ध के त्रिपिटक हैं।
रामकथा के बारे में ई.वी.रामसामी पेरियार, डॉ. आंबेडकर, पेरियार ललई सिंह यादव, , स्वामी अछूतानंद, चंद्रिका प्रसाद ‘जिज्ञासु’, ‘जगदेव प्रसाद,’ संतराम वी.ए., मोतीराम शास्त्री, रजनीकांत शास्त्री, भदन्त आनंद कौशल्यायन, कंवल भारती और तुलसीराम आदि बहुजन नायक-लेखकों ने विस्तार से लिखा है। इन सभी ने एक स्वर से रामायण और राम को शूद्रों( पिछड़ों) अतिशूद्रों ( दलितों) महिलाओं और आदिवासियों के ऊपर वर्चस्व कायम करने की विचारधारा वाला काल्पनिक ग्रंथ कहा है और यह भी बताया है कि कैसे अनार्यों को ही राक्षस-राक्षसी कहकर राम ने उनका बड़े पैमाने पर कत्लेआम किया। पेरियार ने ‘सच्ची रामायण’, डॉ. आंबेडकर ने ‘ राम और कृष्ण की पहेली’ ( हिंदू धर्म की पहेलियां किताब में), स्वामी अछूतानंद ने ‘रामराज्य न्याय’, चंद्रिका प्रसाद ‘जिज्ञासु’ ने ‘ईश्वर और उनके गुड़़्डे’, पेरियार ललई सिंह यादव ने ‘शंबूक बध’ मोेतीराम शास्त्री ने ‘राव न तथागत’ रजनीकांत शास्त्री ने ‘हिंदू जाति का उत्थान और पतन’,भदन्त आनंद कौशल्यायन ने ‘ राम की कहानी राम की जुबानी’ और कंवल भारती ने ‘त्रेता युग का महा हत्यारा’ और तुलसी राम ने ‘क्या अयोध्या बौद्ध नगरी थी’ किताब में रामकथा और राम के पिछड़े, दलित, आदिवासी और महिला विरोधी चरित्र को उजागर किया है।
गाय पट्टी या हिंदी प्रदेश में रामकथा का सबसे मुख्य ग्रंथ तुसलीदास कृत रामचरित मानस हैं। गाय पट्टी के बहुजन नायक रामस्वरूप वर्मा (22 अगस्त, 1923 – 19 अगस्त, 1998)ने अपनी एक किताब में राम और रामचरित मानस के वर्ण-जातिवादी स्वरूप और स्त्री विरोधी चरित्र के बारे में विस्तार से लिखा है। यह किताब रामस्वरूप वर्मा द्वारा स्थापित अर्जक संघ ने ‘ब्राह्मण महिमा, क्यों और कैसे’ शीर्षक से प्रकाशित किया है। वर्मा जी ने यह किताब रामचरित मानस लिखे जाने के चार सौ वर्ष पूरे होने के अवसर पर केंद्र सरकार द्वारा रामचरित मानस चतुष्शताब्दी समारोह मनाने और उस समारोह का संरक्षक तत्कालीन राष्ट्रपति वी. वी. गिरि को बनाने और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा इसकी अध्यक्षता करने के निर्णय के खिलाफ लिखा था। दरअसल इस आयोजन और इस आयोजन का संरक्षक राष्ट्रपति को बनाने तथा प्रधानमंत्री द्वारा इसकी अध्यक्षता करने के खिलाफ वर्मा जी ने राष्ट्रपति वी.वी. गिरि और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को पत्र लिखा था। यह किताब उन्हीं पत्रों का संग्रह हैं। इसके पहले उन्होंने उत्तर प्रदेश के तत्कालिन मुख्यमंत्री कमलापति त्रिपाठी द्वारा इस समारोह के लिए एक लाख रूपए देने के निर्णय के खिलाफ ‘मर्यादा पुरूषोत्तम या ब्राह्मण गुलाम’ शीर्षक के एक लेख 4 जून 1973 को लिखा। 8 अगस्त 1974 को उन्होंने ‘ क्या रामचरित मानस एक धार्मिक ग्रंथ है?’ शीर्षक से एक लेख उस समय लिखा, जब 1974 में ही उत्तर प्रदेश विधानसभा के वर्षाकालीन सत्र में एक विधायक द्वारा रामचरित मानस के पन्न फाड़ने पर द्विजों द्वारा हंगाम किया गया। एक तीसरा लेख उन्होंने तब लिखा, जब 24 दिसंबर 1974 को तमिलनाडु में उत्तर भारत की रामलीला और उसमें रावण को जलाने का विरोध करते हुए रावण लीला का आयोजन हुआ और उसमें रावण की जगह राम, लक्ष्मण और सीता की 19 फीट ऊंचे पुतले को जलाया गया। इसके बाद उत्तर भारत में द्विजों ने काफी हो हल्ला मचाया। इसका जवाब देते हुए रामस्वरूप वर्मा ने 15 मार्च 1975 को ‘राम-रावण काल्पनिक पात्र’ शीर्षक से एक लेख लिखा।
दशरथ पुत्र राम के चरित्र को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए किए जा रहे, रामचरित मानस चतुष्शताब्दी समारोह का विरोध करते हुए उन्होंने लिखा कि भारतीय संविधान समता, न्याय और धर्मनिरपेक्षता पर आधारित है, सरकार वर्ण-जाति व्यवस्था और स्त्री-पुरूष गैर-बराबरी को समर्थन देने वाले रामचरित मानस का प्रचार-प्रसार करके संविधान विरोधी कार्य कर रही है। वर्मा जी का मानना था कि हिंदी में पंडित तुलसीदास का रामचरित मानस ब्राह्मणवाद का सबसे प्रबल प्रचारक है और यह ग्रंथ ब्राह्मणों की महिमा बढ़ाने और कायम करने के लिए लिखा गया है। इसके प्रमाण के तौर वे रामचरित मानस की बहुत सारी पंक्तियां भी अपने लेखों में उद्धृत करते हैं। जैसे-
पूजिय विप्र सकल गुणहीन। शूद्र न गुणगन ज्ञान प्रवीना।।
शापत ताड़त परूष कहन्ता। विप्र पूज्य अस गावहिं सन्ता।।
पूज्य एक जग महुं नहिं दूजा। मन क्रम वचन विप्र करि पूजा।।
सानुकूल तेहि पर मुनि देवा। जो तजि कपट करइ द्विज सेवा।।
मंगल मूल विप्र परितोषू। दहइ कोटिकुल भूसूर रोषू।।
( उद्धृत, ब्राह्मण महिमा क्यों और कैसे? रामस्वरूप वर्मा, पृ.16)
पहली चौपाई में कहा गया है कि ब्राह्मण गुणहीन भी हो, तो भी उसकी पूजा करनी चाहिए और शूद्र गुणवान एवं विद्वान हो तब भी उसकी पूजा नहीं करनी चाहिए। दूसरी चौपाई इससे भी आगे बढ़कर कहती है कि संतों का कहना है कि यदि ब्राह्मण श्राप देता, प्रताड़ित करता है और कठोर वचन कहता है, तब भी पूज्यनीय होता है। तीसरी चौपाई कहती है कि ब्राह्मण के अलावा संसार में कोई दूसरा पूज्यनीय नहीं होता है, ब्राह्मण की मन, वचन और क्रम से पूजा करनी चाहिए। चौथी चौपाई द्विजों ( जनेऊधारियों) का गुणगान करते हुए कहती है कि ऐसे व्यक्ति पर ऋृषियों और देवताओं की कृपा रहती है, जो सारे कपट त्याग द्विजों की सेवा करते हैं और चौथी चौपाई कहती है कि ब्राह्मण के संतुष्ट होने से कल्याण होता है और उनके नाराज होने से करोड़ों कुल नष्ट हो जाते हैं। ऐसे अनेकों दोहों और चौपाईयों से रामचरित मानस भरा पड़ा है, जो बार-बार यह रेखांकित करते हैं कि ब्राह्मण ही सर्वश्रेष्ठ है।
स्वयं रामचंद्र भी सोते-जागते और हर कार्य करने से पहले ब्राह्मणों- के चरणों की याद करते रहते हैं और उन्हें सिर नवाते हैं और उनका आशीर्वाद लेते हैं-
सुमिरि शम्भु गुरु विप्रपद। किए नींद वश नैन।
वन्दि विप्र गुरु पितुमाता। पाइ आशीष मुदित सब भ्राता। ( बालकांड, 312)
अस कहि रथ रघुनाथ चलावा। विप्र चरण पंकज सिर नावा।।( लंकाकांड, 812)
सकल द्विजन्ह कहं नायउ माथा। धर्म धुरंधर रघुकुल नाथा।। ( उत्तरकांड, 921)
जहां एक ओर रामचरित मानस ब्राह्मणों-द्विजों की श्रेष्ठता को स्थापित करता है, वहीं दूसरी ओर गैर-ब्राह्मणों को बार-बार नीच ठहराता है। रामस्वरूप वर्मा राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को संबोधित करते हुए लिखते हैं कि संविधान की समता की भावना के पूर्णतया विपरीत रामचरित मानस जहां एक ओर ब्राह्मणों-द्विजों को को गैर-ब्राह्मणों और महिलाओं की तुलना में श्रेष्ठ ठहराता है, वहीं गैर-ब्राह्मणों एवं महिलाओं को नीच कहता है। तुलसी की नजर में गैर-ब्राह्मण और महिलाएं एक ही कोटि की हैं। इसकी पुष्ट करने के लिए वर्मा जी तुलसी की निम्न चौपाई उद्धृत करते हैं-
ढोल गंवार शूद्र पशु नारी। ये सब ताड़न के अधिकारी ( रामस्वरूप वर्मा , पृ.10)
रामचरित मानस में जगह-जगह गैर-ब्राह्मण जातियों का नाम लेकर भी उन्हें अधम और नीच कहा गया है। जैसे-
जे वर्णाश्रम तेलि कुम्हारा। स्वपच किरात कोल कलवारा।।
आभीर, यवन, किरात, खस। स्वपचादि अति अघरूप जे।। ( उद्धृत, रामस्वरूप वर्मा बालबोधिनी टीका, उत्तरकांड, पृ.1041)
अर्थात तेली,कुम्हार, भंगी, बहेलिया, कोल, कलवार अधम वर्ण के लोग हैं, ये पापी कौमें हैं। इसके साथ रामचरित मानस यह भी कहता है कि अहीर, मुसलमान और किरात अत्यन्त पतित हैं।
केवट जाति को रामचरित मानस में देवताओं के मुंह से नीच कहलावा गया है-
यहि सम निपट नीच कोउ नाहि। बड़ वशिष्ठ सम को जग माहि।
( अरण्डयकांड, पृ.492)
खुद निषाद को मुख से भी उसे नीच कहलावा गया है-
लोक वेद सब भांतिहि नीचा। जासु छांह छुई लेइय सींचा
( अरण्डयकांड, 462)
रामराज्य की सबसे बड़ी खूबी तुलसीदास वर्णाश्रम धर्म का पालन बताते हैं-
वर्णाश्रम निज-निज धरम निरत वेद पथ लोग। ( रामस्वरूप वर्मा, पृ.18 )
इस पर टिप्पणी करते हुए रामस्वरूप वर्मा लिखते हैं कि तय सी बात है कि यदि रामराज में यदि वर्णाश्रण धर्म का ही पालन हो रहा था, तो उसमें सबसे ज्यादा फायदा ब्राह्मणों को था।
तुलसी के रामचरित मानस के अनुसार जहां, वर्णाश्रम धर्म का पालन रामराज की सबसे बड़ी विशेषता है, वहीं शूद्र द्वारा द्विजों की बराबरी करना, अपने ज्ञान पर गर्व करना और द्विजों से यह कहना कि हम तुमसे कम नहीं है, कलयुग का सबसे बड़ा लक्षण है-
बादहिं सूद्र द्विजन्ह सन। हम तुम्हते कछु घाटि।।
जानइ ब्रह्म सो विप्रवर। आंखि देखावहिं डाटि।।
( उत्तरकांड, 1013)
ऐसे बहुत सारी चौपाईयों और दोहों के उदाहरण देकर रामस्वरूप वर्मा यह प्रमाणित करते हैं कि रामचरित मानस मूलत:ब्राह्मणों के वर्चस्व को स्थापित करने एव बनाए रखने के लिए लिखा गया है।
रामचरित मानस के ब्राह्मणवादी चरित्र और गैर-ब्राह्मणों-गैर-द्विजों के वर्ण-जाति के आधार पर घृणा की विस्तार से विवेचना करने के बाद रामस्वरूप वर्मा रामचरित मानस के स्त्री विरोधी मानसिकता को उजागर करते हैं।रामचरित मानस के रचनाकार तुलसीदास जैसा कि ऊपर जिक्र किया जा चुका है, शूद्रों के साथ महिलाओं प्रताडित करने की वकालत करते हैं। तुलसीदास पूरी तरह महिलाओं की स्वतंत्रता के खिलाफ हैं। वे कहते हैं कि जैसे बहुत तेज बरसात होने पर खेतों की मेड़ टूट जाते हैं, उसी तरह से स्वतंत्र होने पर नारियां बिगड़ जाती हैंं-
महावृष्टि चलि फूट कियारी। जिमि स्वतंत्र होई विगरहि नारी।। ( उद्धृत, रामस्वरूप वर्मा, पृ.11)
इस पर टिप्पणी करते हुए रामस्वरूप वर्मा लिखते हैं कि भारत का संविधान लिंग के आधार कोई भेदभाव नहीं करता है, फिर आज के युग में ऐसे रामचरित मानस की क्या जरूरत जो नारी स्वतंत्रता का विरोधी हो। वे यह भी पूछते है कि जब पुरूष स्वतंत्र रह सकता है,तो स्त्री स्वतंत्र क्यों नहीं रह सकती है?
इतना ही नहीं तुलसीदास ने महिलाओं को सभी दुखों का खान कहा है-
एक मूल बहु शूल प्रद। प्रमदा सब दुख खानि।। ( वही, पृ.12)
तुलसी ने महिलाओं को स्वभावत: अत्यन्त कामुक और व्यभिचारिणी कहा। यहां तक वह भाई, पिता और पुत्र के प्रति भी कामवासना से भर जाती हैं और खुद को व्यभिचार से रोक नहीं पाती हैं-
भ्राता पिता पुत्र उरगारी। पुरुष मनोहर निरखत नारी।
होहिं विकल सक मनहिं न रोकी। जिमि रविमणिं द्रव रविहिं विलोकी।। ( वही, पृ.14)
इतना नही नहीं, तुलसी यह भी घोषित कर देते हैं कि महिलाओं में आठ अवगुण तो हमेशा ही रहते हैं, इससे को महिला मुक्त नहीं हो सकती है-
नारी स्वभाव सत्य कवि कहहीं। अवगुण आठ सदा उर रहहीं।।
साहस, अनृत चपलता माया। भय अविवेक अशौच अदाया।। ( वही, पृ.15)
ऐसी स्त्री विरोधी चौपाईयों को उद्धृत करके रामस्वरूप वर्मा ने रामचरित मानस के स्त्री विरोधी चरित्र को उजागर किया है।
रामचरित मानस वर्ण-जातिवादी और स्त्री-विरोधी चरित्र को उजागर करने के बार वर्मा जी विभिन्न बिंदुओं के तहत राम के चरित्र की असलियत को उद्घाटित करते हुए लिखते हैं- “पंडित तुसलीदासकृत रामचरित मानस में राम न मर्यादा पालक थे, न महापुरुष। वे शुद्धरूप से जातिवादी, अधर्मी और उदात्त गुणों से हीन थे। वे मनुजद्रोही के नहीं, ब्राह्मणद्रोही के दुश्मन और ब्राह्मणों के मन, वचन, कम से गुलाम थे और दूसरों को भी ब्राह्मणों की गुलामी का उपदेश देते रहे और उसके लिए सारे कुकर्म किए। ( ब्राह्मण महिमा क्यों और कैसे? रामस्वरूप वर्मा, पृ.43)
नोट- जितने भी रामचरित मानस से जितने भी दोहे और चौपाईयां उद्धृति की गई हैं, वह सब रामस्वरूप वर्मा ने अपनी किताब ब्राह्मण महिमा क्यों और कैसे में उद्धृत किया है।
सिद्धार्थ रामू जी के फेसबुक वॉल से साभार