संयुक्त राष्ट्र की आज जारी एमिशन्स गैप रिपोर्ट की मानें तो वर्ष 2021 में ब्रिटेन के ग्लासगो में हुए सीओपी26 में सभी देशों द्वारा अपनेनेशनली डिटरमाइंड कंट्रीब्यूशंस (एनडीसी) को और मजबूत करने का संकल्प व्यक्त किये जाने और राष्ट्रों द्वारा कुछ अपडेटेड जानकारीदिये जाने के बावजूद प्रगति के मोर्चे पर बुरी तरह नाकामी ही नजर आ रही है।
रिपोर्ट बताती है कि इस साल पेश किये गये एनडीसी में सिर्फ 0.5 गीगाटन कार्बन डाई ऑक्साइड के बराबर ग्रीनहाउस गैसों का हीजिक्र किया गया है जो वर्ष 2030 में अनुमानित वैश्विक उत्सर्जन के एक प्रतिशत से भी कम है। इस निहायत धीमी प्रगति ने दुनिया कोपैरिस समझौते के तहत निर्धारित लक्ष्य यानी ग्लोबल वार्मिंग को डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लक्ष्य से कहीं ज्यादा गर्मीबढ़ने के मुहाने की तरफ और भी अधिक धकेल दिया है। एक अनुमान के मुताबिक बिना शर्त वाले एनडीसी से इस सदी तक ग्लोबलवार्मिंगको 2.6 डिग्री सेल्सियस तक रोकने के 66 प्रतिशत अवसर मिलते हैं। जहां तक बाहरी सहयोग पर निर्भर रहने वाले सशर्तएनडीसी की बात है तो उनसे यह आंकड़ा घटकर 2.4 डिग्री सेल्सियस हो जाएगा।
नीतियाँ
अगर मौजूदा नीतियों की ही बात करें तो इससे वैश्विक तापमान में 2.8 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोत्तरी हो जाएगी। इससे वादों और उनपर अमल के बीच के अंतर के कारण पड़ने वाले पर्यावरणीय प्रभावों का पता चलता है। सबसे अच्छी स्थितियों में अगर बिना शर्त वालेएनडीसी और अतिरिक्त नेट जीरो उत्सर्जन सम्बन्धी संकल्पों को पूरी तरह लागू किया जाए तो वैश्विक तापमान में सिर्फ 1.8 डिग्रीसेल्सियस की ही बढ़ोत्तरी होगी, लिहाजा उम्मीद अब भी बाकी है। हालांकि, वर्तमान उत्सर्जन, लघु अवधि के एनडीसी लक्ष्य और लंबीअवधि के नेटजीरो लक्ष्यों के बीच विसंगति के आधार पर यह परिदृश्य वर्तमान में विश्वसनीय नहीं है।
उत्सर्जन में कटौती बेहद ज़रूरी
पैरिस समझौते के लक्ष्य को हासिल करने के लिये दुनिया को अगले आठ सालों के दौरान ग्रीनहाउस गैसों में अभूतपूर्व कटौती करनीहोगी। वर्तमान में लागू नीतियों पर आधारित उत्सर्जन से तुलना करें तो बिना शर्त और सशर्त एनडीसी से वर्ष 2030 तक वैश्विकउत्सर्जन में क्रमश: 5 और 10 प्रतिशत की अनुमानित गिरावट आयेगी। ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रखने के लिये कमसे कम लागत वाले रास्ते पर जाने के लिए वर्ष 2030 तक मौजूदा नीतियों के तहत परिकल्पित उत्सर्जन में 45 प्रतिशत की कमी लानीहोगी। ग्लोबल वार्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लक्ष्य के लिये उत्सर्जन में 30 प्रतिशत कटौती जरूरी है। इतने बड़ेपैमाने पर कटौती का मतलब है कि हमें बहुत तीव्र और सुव्यवस्थित रूपांतरण करने की जरूरत है। यह रिपोर्ट प्रमुख क्षेत्रों औरप्रणालियों में इस रूपांतरण के एक हिस्से को लागू करने के रास्ते तलाशती है।
यूएनईपी के अधिशासी निदेशक इंगर एंडरसन कहते हैं “वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुधार और वर्ष 2030 तक ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जनको लगभग आधा करना….. यह बहुत मुश्किल काम है और कुछ लोग तो इसे असम्भव ही कहेंगे, मगर हमें इसके लिये कोशिश तोकरनी ही होगी। एक डिग्री का हर हिस्सा सबके लिये मायने रखता है : चाहे वह जोखिम से घिरे समुदाय हों, प्रजातियां औरपारिस्थितिकियां हों और चाहे हममें से कोई भी हो। अगर हम वर्ष 2030 तक के लक्ष्यों को हासिल नहीं भी कर पाते हैं, तो भी हमें डेढ़डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य के करीब जाने की हर मुमकिन कोशिश करनी ही चाहिये। इसका मतलब है कि एक नेटजीरो भविष्य की नींवस्थापित करना: यह हमें तापमान में कमी लाने और स्वच्छ हवा, हरित रोजगार और सार्वभौमिक ऊर्जा पहुंच जैसे कई अन्य सामाजिकऔर पर्यावरणीय लाभ प्रदान करने की इजाजत देगा।”
ऊर्जा, उद्योग, परिवहन और इमारतें
रिपोर्ट में पाया गया है कि बिजली आपूर्ति, उद्योग, परिवहन और भवनों में नेट जीरो ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन की दिशा में रूपांतरण हो रहाहै, लेकिन इसे बहुत तेजी से आगे बढ़ने की जरूरत है। बिजली की आपूर्ति सबसे उन्नत है, क्योंकि अक्षय ऊर्जा की लागत में नाटकीयरूप से कमी आई है। हालांकि, परिवर्तन की रफ्तार एक न्यायसंगत रूपांतरण और सार्वभौमिक ऊर्जा पहुंच सुनिश्चित करने के उपायोंके साथ–साथ बढ़नी चाहिए। इमारतों के लिए सर्वोत्तम उपलब्ध तकनीकों को तेजी से लागू करने की जरूरत है। उद्योग और परिवहन केलिए, शून्य उत्सर्जन प्रौद्योगिकी को और विकसित तथा लागू करने की जरूरत है। परिवर्तन को आगे बढ़ाने के लिए सभी क्षेत्रों को नएजीवाश्म ईंधन–गहन बुनियादी ढांचे के जंजाल से बचने, शून्य–कार्बन प्रौद्योगिकी को आगे बढ़ाने और इसे लागू करने और व्यवहारिकपरिवर्तनों को आगे बढ़ाने की जरूरत है।
खाद्य प्रणालियों में हो सुधार
खाद्य प्रणालियां लगभग एक तिहाई ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं। खाद्य प्रणालियों के लिए मुख्य केन्द्र वाले क्षेत्रों मेंप्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा, मांग–पक्ष आहार परिवर्तन, कृषि स्तर पर खाद्य उत्पादन में सुधार और खाद्य आपूर्ति श्रृंखलाओंका डीकार्बनाइजेशन शामिल हैं। इन चार क्षेत्रों में जरूरी कदम उठाने से वर्ष 2050 तक अनुमानित खाद्य प्रणाली उत्सर्जन को मौजूदास्तरों के लगभग एक तिहाई तक कम किया जा सकता है, जबकि मौजूदा ढर्रे को जारी रखने पर उत्सर्जन लगभग दोगुना हो जाता है।निजी क्षेत्र भोजन के होने वाले नुकसान और अपशिष्ट को कम कर सकता है, अक्षय ऊर्जा का उपयोग कर सकता है और कार्बनउत्सर्जन में कटौती करने वाले नए खाद्य पदार्थ विकसित कर सकता है। व्यक्तिगत स्तर पर नागरिक पर्यावरणीय स्थिरता और कार्बन मेंकमी के लिए भोजन का उपभोग करने के वास्ते अपनी जीवन शैली बदल सकते हैं। इससे स्वास्थ्य सम्बन्धी कई लाभ भी होंगे।
वित्तीय तंत्र ऐसा हो, जो एनेर्जी ट्रांज़िशन लायक हालात बनाये
कम उत्सर्जन वाली अर्थव्यवस्था में वैश्विक परिवर्तन के लिए प्रति वर्ष कम से कम 4-6 ट्रिलियन अमेरिकी डालर के निवेश की जरूरतहोने की उम्मीद है। यह प्रबंधित कुल वित्तीय सम्पत्तियों का अपेक्षाकृत छोटा (1.5-2 प्रतिशत) हिस्सा है मगर यह आवंटित किए जानेवाले अतिरिक्त वार्षिक संसाधनों के संदर्भ में महत्वपूर्ण (20-28 प्रतिशत) है। अधिकांश वित्तीय कर्ताओं ने घोषित इरादों के बावजूदअल्पकालिक हितों, परस्पर विरोधी उद्देश्यों और जलवायु जोखिमों को पर्याप्त रूप से नहीं पहचानने के कारण जलवायु शमन को लेकरबहुत सीमित कार्रवाई की है।
रिपोर्ट वित्तीय क्षेत्र में सुधार के लिए इन दृष्टिकोणों की सिफारिश करती है। इन सभी को एक साथ पूरा किया जाना चाहिए:
• टैक्सोनॉमी और पारदर्शिता के माध्यम से वित्तीय बाजारों को और अधिक कुशल बनाएं।
• कार्बन मूल्य–निर्धारण लागू करें। जैसे कर या सीमा–और–व्यापार प्रणालियाँ।
• सार्वजनिक नीतिगत हस्तक्षेपों, करों, खर्च और विनियमों के माध्यम से वित्तीय व्यवहार को कम करें।
• वित्तीय प्रवाह में बदलाव, नवाचार को प्रोत्साहित करने और मानक निर्धारित करने में मदद के माध्यम से निम्न कार्बन प्रौद्योगिकी केलिए बाजार बनाएं।
• केंद्रीय बैंकों को तैयार करना: केंद्रीय बैंक जलवायु संकट को दूर करने में अधिक रुचि ले रहे हैं, लेकिन विनियमों पर और ज्यादा ठोसकार्रवाई की जरूरत है।
• सहयोगी देशों के जलवायु “क्लब” की स्थापना, सीमा पार वित्त पहल और न्यायपूर्ण परिवर्तन भागीदारी जो नीति मानदंडों को बदलसकती हैं और विश्वसनीय वित्तीय प्रतिबद्धता उपकरणों जैसे कि सॉवरेन गारंटी के माध्यम से वित्त के रुख को बदल सकते हैं।
पूरी दुनिया में जलवायु परिवर्तन की मार तेज होती जा रही है। अपनी इस तल्खी के साथ वह यह भी संदेश दे रही हैं कि ग्रीनहाउस गैसोंका उत्सर्जन तेजी से कम करना ही होगा। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) की इस रिपोर्ट में पाया गया है कि अंतरराष्ट्रीयसमुदाय पैरिस समझौते में जताये गये संकल्पों को पूरा करने की दौड़ में अभी बहुत पीछे है और उसके पास ग्लोबल वार्मिंग को डेढ़ डिग्रीसेल्सियस तक सीमित रखने के लक्ष्य को हासिल करने के लिए कोई विश्वसनीय रास्ता भी नहीं है। परेशान करने वाली बात ये है किजलवायु सम्बन्धी प्रतिज्ञाओं ने दुनिया को इस सदी के अंत तक तापमान में 2.4-2.6 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के रास्ते पर डाल दियाहै।